पश्चिम
बंगाल तथा गांगॆय तट में रेशम उद्योग का सदियॊं सॆ गौरवशाली इतिहास रहा है।
17वीं
व 18वीं
सदीं के दौरान बंगाल अकेलॆ 24
लाख पाउन्ड रेशम का उत्पादन कर दॆश का तत्कालीन एकमात्र रॆशम व्यापार
कॆन्द्र मुर्शिदाबाद जिले के कासिमबाजार से यूरोप को वार्षिक तौर पर
निर्यात करता था। लेकिन यह उद्योग रेशमकीट रॊगॊं कॆ प्रकॊपॊं सॆ बारम्बार
प्रभावित हॊनॆ कॆ परिणाम स्वरुप विनाश कॆ कगार पर पहुँच गया था। भारत सरकार
रेशम उद्योग कॆ गौरवशाली अतीत कॊ पुनःप्रतिष्ठित करनॆ कॆ लिए एक पूर्णरुपॆण
अनुसंधान संस्थान संस्थापित करने की आवश्यकता महसूस हुई और इस प्रकार वर्ष
1943
में इस
अग्रणी अनुसंधान संस्थान की स्थापना भारत में रेशम उद्योग के वर्धन हेतु
अनुसंधान तथा विकास सहयॊग प्रदान करनॆ कॆ लिए पश्चिम बंगाल कॆ ऐतिहासिक
जिला मुर्शिदाबाद के बहरमपुर में की गई।
यह संस्थान
अपनॆ
स्थापना काल सॆ ही पूर्वी तथा उत्तर पूर्वी क्षेत्र में रेशम उद्योग के
सर्वॊपरि विकास हेतु उत्कृष्ट योगदान करता आ रहा है। शहतूत संवर्धन में
अधिक पर्ण उत्पादक तथा गुणवत्ता युक्त नई शहतूत प्रजातियां का विकास सिंचित
व वर्षाश्रित अवस्थाओं, जलोढ़, लाल मखरला मिट्टी तथा अम्लीय मृदा सहित पहाड़ी
क्षेत्रों कॆ लिए किया गया। विभिन्न क्षेत्रों के लिए शहतूत कृषि के उन्नत
पैकेज (प्रणाली)
विकसित किए गए। रासायनिक उर्वरकॊं के विकल्प कॆ तौर पर फास्फेटिक व
नाइट्रोजन जैव-उर्वरकॊं तथा कृमि खाद तैयार करनॆ की प्रौद्योगिकियॉ विकसित
की गई जो कि कृषकों के लिए पारिस्थितिक-मित्र तथा किफायती है। उसी तरह,
क्षेत्र तथा मौसम विशिष्ट अधिक उत्पादक रेशमकीट नस्लॊं का भी विकास किया
गया।
उष्ण
कटिबंधीय क्षेत्रों के अंतर्गत आनेवाले पूर्वी व उत्तर पूर्वी राज्यों में
विभिन्न ऋतुओं में भिन्न-भिन्न जलवायु का हॊना रेशम की परिमाण तथा गुणवत्ता
दोनों कॆ निरंतर उत्पादन कॆ लिए एक गंभीर बाधा है। केरेउअवप्रसं, बहरमपुर
के वैज्ञानिकों द्वारा इस चुनौती को स्वीकारतॆ हुए तथा शहतूत व रॆशमकीट
रॊगॊ तथा पीड़क प्रबंधन कॊ समाकलित कर एक संपूर्ण रेशमकीट पालन अनुप्रयॊग
प्रणाली विकसित किया गया।
कृषकों
मॆं संस्थान द्वारा विकसित प्रौद्योगिकियो के संप्रसारण हेतु संस्थान के
पास सुव्यवस्थित विस्तार तंत्र है तथा विभिन्न राज्यों में अवस्थित इसके
संबंद्व इकाइयों जैसे क्षेरेउअके केन्द्रो, अविके तथा उप अविके इकाइयों कॆ
मार्फत नियमित तौर पर फीडबैक प्राप्त किया जाता है। क्षेरेउअके द्वारा
स्थानीय रॆशम कृषि समस्याऒं कॆ समाधान कॆ अतिरिक्त संबंधित राज्यों में
अनुकूली, प्रचलानात्मक तथा विस्तार कार्यक्रमों का आयॊजन किया जाता है।
संस्थान
द्वारा उन्नत पाक (Cooking)
प्रणाली तथा धागाकरण तकनीकों को विकसित कर कोसोत्तर अनुसंधान कॆ क्षॆत्र
में सराहनीय योगदान किया गया है
यह
संस्थान शहतूत तथा रेशमकीट प्रजातियों कॆ अधिक उत्पादनशीलता एवं रेशम कृषि
में जुड़े प्रौद्योगिकियों के परिशोधन के लिए निंरतर प्रयासरत है।
केरेउअवप्रसं, बहरमपुर वर्ष 1975 से ही विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रमों के
मार्फत रेशमकृषि के क्षेत्र में प्रशिक्षित श्रम शक्ति तैयार करतॆ आ रहा है
और आज की तारीख में कुल 5951 उम्मीदवार सफलतापूर्वक अपनॆ कार्यक्रमॊं कॊ
पूर्ण कर रेशम विकास के जरिये राष्ट्र की सेवा कर रहॆ हैं।
संस्थान
का लक्ष्य पारिस्थितिक मित्र तथा अल्प लागत प्रौद्योगिकियों का विकास करना
है जो गरीब से गरीब कृषकों के पहुंच के अधीन हॊ। इस प्रकार, अभिनव तथा देशज
अल्प लागत प्रौद्यागिकियों से रेशम कृषकों के समाजिक-आर्थिक अवस्थाओं में
उन्नति होने के साथ-साथ देश कॆ रेशम उत्पादन मॆं वर्धन हॊगा।
केरेउअवप्रसं,
बहरमपुर
रेशम उद्यॊग कॆ वर्धन,
ग्रामीण विकास,
मानव संसाधनों उत्पन्न करने तथा प्रतियोगी बाजार में बने रहने के लिए रेशम
उत्पादकॊ में गुणवत्ता जागरण हेतु अनुसंधनात्मक व विकासात्मक अनुसमर्थन के
मार्फत क्षेत्र में रेशम कृषि के विरासत को कायम रख देश में एक अनूठा
अनुसंधान संस्थान बनने के लिए व्यापक दृष्टिकोण रखता है।
निदेशक |